
World Heart Day: बदलती जीवन शैली से युवाओं में बढ़ा हार्ट अटैक खतरा: डॉ. आलोक माथुर
जयपुर। प्रतिदिन लाइफ स्टाइल में आ रहे हैं बदलाव के कारण लोगों को कई तरह की बीमारियां घेर रही हैं। तनाव, खान-पान पर ध्यान न देना, शराब, धूम्रपान के सेवन आदि और अन्य कई कारणों के चलते आजकल बुजुर्गों के साथ-साथ युवा वर्ग को भी हृदय रोग संबंधी बीमारियां परेशान कर रही है। अव्यवस्थित दिनचर्या के कारण ये बीमारियां किसी भी उम्र के लोगों को अपनी चपेट में ले रही है। इन्हीं बातों का ख्याल रखते हुए और लोगों को जागरूक करने के लिए पूरे विश्व में हृदय रोग के प्रति जागरूकता बढ़ाने और हृदय संबंधी समस्याओं से बचने के विभिन्न उपायों पर प्रकाश डालने के मकसद से दुनियाभर में हर साल 29 सितंबर को विश्व हृदय दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय जीवन शैली में तेजी से आए बदलाव से युवाओं में हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता जा रहा है। कोरोनाकाल के बाद तो हार्ट अटैक के मामले और अधिक तेजी से बढ़े है। सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. आलोक माथुर ने वर्ल्ड हार्ट डे पर बताया कि बदलती जीवन शैली और नेगेटिविटी से हार्ट अटैक का खतरा अधिक बढ़ गया है। पहले 4० साल से अधिक उम्र के लोगों में ही हार्ट अटैक आता था, वहीं अब 15 से 2० साल के युवा नौजवानों को हार्ट अटैक का दौरा पड़ जाता है। डॉ. माथुर ने बताया कि कोरोना के कारण रक्त का थक्का जमने की समस्या बढ़ी है, इससे भी अटैक की घटानएं बढ़ी है। वहीं कोरोना के कारण लोगों का जीवन काफी प्रभावित हुआ है। लोगों की नौकरियां जा रही है, जीवन में अनिश्चिता का दौर है, इससे वो मानसीक तनाव भी बढ़ा है। इसके साथ ही प्रतिस्पर्धा के इस दौर में लोगों नेगेटिविटी ने घर कर लिया, इससे भी हार्ट के मामलों में वृद्धि हुई है। बच्चों में हार्ट अटैक बढऩे का एक अन्य कारण उनमें मोटापे का बढऩा भी है।
हार्टअटैक के 3० फीसदी मामलों में नहीं होता पेन
डॉ. माथुर ने बताया कि हार्ट अटैक के करीब 3० फीसदी मामलों में मरीज को पेन नहीं होता। ऐसे मरीजों को सीने में जलन, गैस्टिक व डकार जैसा ही महसूस होता है। लेकिन उन्हें हार्ट अटैक का दौरा पड़ जाता है। हार्ट अटैक की बदलती थ्योरी में लोगों को त्काल प्रभाव से इसकी जांच करवानी चाहिए।
हार्ट अटैक का पता करने के लिए कराए सीटी स्कैन
डॉ. माथुर ने बताया कि जब भी किसी को हार्ट अटैक जैसा महसूस हो तो उसे तत्काल प्रभाव से सीटी स्कैन करवानी चाहिए। उन्होंने बताया कि शुरूवात में ईसीजी जांच में 5० फीसदी मामलों में हार्ट अटैक का पता ही नहीं चलता।
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